कबीर ने हर धार्मिक ढकोसले का विरोध किया
और अपने आप को कबीरपंथी कहने वाले कुछ गवार लोग सत्संग में मगन होते जा रहे हैं कबीर क नाम पे ही
निकम्मे निट्ठले गुरु बाबाओ की भी फ़ौज बनाते जा रहे हैं
मुंडन के बाल गंगा में डालने को नाटक कहते हैं- सही है
पर उन्ही बालो को आटे में संजो के रख लेते हैं!
दूसरा बचा पैदा होगा क्या आटे से ?
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